Sunday, August 21, 2011

उफ़ ये बेबसी ......

पुकार रहा ज़मीर की आओ चलें एक जोश होके,
उफ़ ये बेबसी कैसी, ये दीवारों की घुटन कैसी,
लहू में उठता है उबाल की फट पड़े बादलों सा,
उफ़ ये कमजोरी कैसी, ये हथेली में नमी कैसी,
कब तक दबाओगे अपने साँसों की उफ्नाहट,
उफ़ ये डर कैसा, ये पैरों में जकडन कैसी,
कुछ चार जमा लोग वो भी हैं जो लड़ रहे खुले आसमान में,
उफ़ ये मेरी और उनकी जंग का सवाल कैसा,
ये देश जो पुकार रहा की बचा लो उसे,
उफ़ ते हम कैसे, ये हमारे कानो में रुई कैसी,
उफ़ ये बेबसी कैसी, ये दीवारों की घुटन कैसी..........

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