अब तो है फट पड़ा लहू मेरी आँखों से,
उलझ सा गया था रगों में ही घुटके,
है खींचती वो चीख मेरी सांसें,
की अब दिल निकलके सड़कों पे है आता,
चलो कम से कम उस शोर का साथ ही छू लो,
की नाम जुड जाए नयी सुबह की ताजपोशी में,
लगा मुझे की जिंदा है अब भी मेरे लहू का रंग.......
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