Wednesday, November 28, 2018

चूहे का सपना



चूहे ने देखा एक सपना,
बन गया वो जंगल का राजा।

बोला वो सबको है आना,
मेरे घर पे लेके बाजा।

बिल्ली आयी जल्दी आगे,
बोली  शेर ही है यहाँ का राजा।

सुनके ये चूहे ने उठायी मूंछ,
बोला शेर की खींचूंगा पूँछ।

चूहे की सुन ये ललकार,
शेर ने लगायी जोर की दहाड़।

शेर को देख उड़ गए होश,
चूहे राजा भागे सब छोड़।

बोला माफ़ करो महाराज,
आप ही  करो यहाँ पर राज।

Tuesday, July 31, 2012

हर खून से जो श्वास निकले, जय हिंद

हर खून से जो श्वास निकले, जय हिंद,
हर श्वास से जो, खून गाए, जय हिंद,
हर एक स्पंदित बूँद बोले, जय हिंद,
कलरव एक ताल में बिन हिंद, जो शून्य होवे,
निज शून्य भी इक राग व्यापित, जय हिंद,
यह कल्पना नित श्वास दौड़े हर हिंद,
चल खेल ले एक आस आज तू भी ए हिंद,
कि कल फिर न बोले शून्य हर एक आस भी............

Friday, July 6, 2012

फिर चले गए बिन बरसे .......

वो आज आए और फिर चले गए,
वो आज आए और फिर चले गए, बिन बरसे,

कुछ साल पहले तक तो बिना मिले न जाते थे,
इस दफा जाने क्या है, बिन भिगाए ही चले गए ,

 इस बार लगता है वो काग़ज़ यूँ ही रद्दी में जाएंगे,
 इस बार लगता है वो काग़ज़ यूँ ही रद्दी में जाएंगे, बिन नाव बने,

कई साल पहले मैं उन चीटियों को नाव पे रखके तैराता था,
आज तो हालात इस कदर हैं कि नाव ही तैराने को नहीं है,

मालूम होता है मुझे ही जाना पड़ेगा कहीं आस पास,
कहीं आस पास सुना है वो  आते  हैं,

शायद वहीँ मुलाकात  हो पाए, शायद वहीँ कुछ  भीग जाऊं ................

Thursday, January 26, 2012

अभी जिंदा है जुनून

मेरा पसीना जब भी उतरके आता है मेरी आँखों में,
लगता है मेरी साँसों में गर्माहट अभी जिंदा है।

जुबां जब भी सूख के सख्त हुई है,
लगता है मेरी रगों में प्यास अभी जिंदा है।

जब कभी भी लहू दौड़ते दौड़ते आंसुओं में ढलकता है,
लगता है मेरे लहू का लाल रंग अभी जिंदा है।

खुली सुबह जब भी खाली सड़क पे दौड़ पड़ता हूँ,
लगता है मेरे क़दमों में रवानी अभी जिंदा है।

न पंख हैं न हवा का रुख है, फिर भी उड़ जाने का दिल है,
लगता है तब मेरे दिल में उड़ने का जुनून अभी जिंदा है।

न मै अभी लौटा हूँ न मैंने अभी चाह छोड़ी है,
लगता है मेरे सपनो में मंजिल अभी जिंदा है ..............

Sunday, August 21, 2011

अब न जागे तो....

अब न जागे तो जागने का मौका ही न मिलेगा,
अब न उतरे दौड में तो कभी दौड ही न पाओगे,

न कह दूसरों को की तेरे किये वो लड़ बैठें,
कल न कहना की अफ़सोस मैं भी जाता,

हैं आज वो तीन रंग पुकारते उतरने को तेरी रग में,
की न कर उनको दरकिनार एक कोने में सजाके........

चलो आज उतार दें अपनी छाँव ढूँढने की चाहत....

सुबह सुबह जो मै निकला था खुली धूप में,
एक छाँव की तलाश में ही चला था हर पल,
न मैंने देखा की मुझे छाँव चाहिए भी नहीं,
न मैंने सोचा की मुझसे ज्यादा किसी और की जरूरत है,
जाने कहाँ से मिलते गए मुझे छाँव बेचने वाले,
जाने कब मै उनसे सहारे खरीदता चला गया,
ये सिलसिला यूँ चला की मै खुद को खो बैठा,
और जाने कब वो साहूकार मुझपे हावी हो बैठा,
आज सुबह सुबह आई आवाज़ की पकडो उस साहूकार को,
खिडकी से बाहर झाँका तो पूरी गली भरी है भीड़ से,
कोई कहता है वो चोर है कोई कहता है मारो इसे,
मगर ये बात मै और वो भी भूल गए कहीं,
की हम भी हिस्सेदार हैं बराबर के इस गुनाह में,
चलो अब बात करें उसकी जिसे उस छाँव की जरूरत थी,
वो जो सुबह निकला था छाँव नहीं भूख बुझाने को,
वो जहाँ भी गया न दे पाया उस आह का मोल,
न ले पाया वो जगह अपनी काबिलियत से,
जाने कब से वो कोशिश में है वो लम्हा जी लेने के,
पर हर पल मिलता है उसे वही मोटा साहूकार हाथ बढ़ाये,
आज सुबह का जो शोर देखा जो जोश सुना,
मन कूद पड़ा छत से गलियारे में की मै भी आता हूँ,
चलो आज उतार दें, अपनी छाँव ढूढ़ने की चाहत को,
चलो आज उठाएँ हौसला उस साहूकार को गिरा देने की .......

जिंदा है मेरे लहू का रंग...

अब तो है फट पड़ा लहू मेरी आँखों से,
उलझ सा गया था रगों में ही घुटके,
है खींचती वो चीख मेरी सांसें,
की अब दिल निकलके सड़कों पे है आता,
चलो कम से कम उस शोर का साथ ही छू लो,
की नाम जुड जाए नयी सुबह की ताजपोशी में,
लगा मुझे की जिंदा है अब भी मेरे लहू का रंग.......