Wednesday, August 10, 2011

आओ न देखें नाव की मजबूती...

आओ न देखें नाव की मजबूती या की हवा का रुख,

देखना है तो बाजुओं में रवानी और लहू में उबाल,

चलके कहीं जो बैठ जाये छाँव में धूप से थककर,

आओ छोड़ उस परछाई को बढ़ चलें,

न राह, न रुख, न पहर, न थकन, देखें तो सिर्फ मंजिल,

की चल पड़े हैं तो पहुंचेगे ही गर कहीं सांसें न छूटी,

मेरे पसीने का नमक ही मेरी आँखों का जब सुरमा बन जाये,

आओ चलें जब तक की हर चाल चल पड़े,

जो पहुंचे मंजिल तक तो फिर कुछ और देखेंगे,

जो न पहुंचे क़यामत तक भी तो अगली दफा सोचेंगे....

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