Monday, October 1, 2007

जुनून

जुनून है आंखों में, लहू के कतरों में ,
छीन के लानी है उनकी हँसी, खो गयी है जो भीड़ में,
देने हैं वो कुछ पल उन छोटे छोटे धूप में दौड़ते क़दमों को,
आज इस कड़ी चट्कती धूप में ढूँढते हैं जो जरा सी छाँव,
उन छोटे छोटे हाथों में सपने नही हैं,
वो नन्ही नन्ही आँखें देख सकती हैं तो सिर्फ भूख,
उनकी सुबह से शाम तक कि दौड़ है, उस भूख को जीतने की,
क्या वो ऐसे ही दौड़ते रहेंगे, अनजान अपनी आने वाली हार से,
नही हम नही हारेंगे, न ही हम थकेंगे,
जीतना है हर एक उस हार के पल को.............................

2 comments:

Animesh Raj said...

ek movie aa rahi hai.."tare jameen per"....tere hi kavita se prerit hoker script likha hai.....6.3 out of 10 for this....solely &wholely my marking criteria...

Rahul said...

hum jeet kar rahenge :)