Wednesday, October 3, 2007

मेरे भरम पे एहसान तो कर

कुछ तो मेरे भरम पे एहसान कर,
कभी तो ये कह के बता कि मेरी साँसों से नफरत है तुझे,

कब से सुन रही ये आँखें तेरे क़दमों की आहट,
एक बार ना ही कह के इन पलकों को राहत तो दे,

जाने कितने दिनों से ये लम्हे धड़कना भूल गए हैं,
कम से कम नज़रें ही फेर ले कि इन साँसों को चैन से सोने तो दे ..........................

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