दौड़ते दौड़ते उड़ने कि आरजू है इन क़दमों में,
पंख नही तो क्या, बाजुओं से ही हवा चीरने कि आरजू है,
सूखते होंठों में प्यास है चांद पे भीगने की,
गीली आंखों कि ख्वाहिश है सूरज को भिगोने की,
आज इन राहों पे पड़ते हैं निशाँ बढते सपनों के,
कल की हवाओं में सरसराहट इन हौसलों के नाम होगी,
सुबह आज उन पलाश के पत्तों पे रात की कहानी है,
कल से ये रात ही न होगी, सिर्फ दिन ही दिन धड्केगा उन नब्ज़ों में.............
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1 comment:
completely describes the way i thnk...
real inspiring
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