Sunday, February 27, 2011

मै क्या हूँ, कहाँ हूँ, क्या खोया, क्या छोड़ा और क्या हासिल किया.

कुछ तारे सहमे से दिखते हैं उस कहकशां में,
शायद रात उतरने को है आसमान के कांधों से,

कसूर तारों का क्या जो दूर हैं अपने चाहने वालो से,
या कि रात ही क्यों साया देती है चमकने को,

हर सुबह कि तैरती अंगडाई में,
कुछ ख्वाब भी हैं जो बिखरते हैं उन किरणों में,

कुछ खो जाते हैं उन तारों के साथ उजालों में,
कुछ ही बचते हैं अपनी मंजिल पाने को,

कई बार ये सोचता हूँ कि देखूं पलट के,
देखूं उन्हें जिन्हें जिया गुज़री हज़ारों रातों में,

देखूं मैंने कितने ख्वाब गढ़े और कितनो ने सुबह देखी,
फिर कहूं कि मै क्या हूँ, कहाँ हूँ, क्या खोया, क्या छोड़ा और क्या हासिल किया.............

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