Sunday, December 26, 2010

इक आइना

इक आइना जो कल खरीदा था मोल भाव करके,
कि एक तस्वीर आयेगी तेरी उसमे पूरी पूरी,
इक नया ओवर कोट भी लिया था बड़ी मशक्कत के बाद,
कि एक सर्द लहर में खूबसूरत अक्स उस आईने में था,
दुकानदार ने दो हुक भी दिये थे उसे टांगने के लिए,
मगर दीवार के लिए चार कीलें ही न थी हमारे पास,
चलो एक जूट कि रस्सी में ही लटका दिया है उस आईने को,
कि जब कीलें मिलेंगी तब देखेंगे, आज ऐसे ही सही,
कुछ शानदार किनारे भी बने हैं उसके चारो ओर,
कि तेरी तस्वीर जो दिखती है उसमे एक फ्रेम के साथ,
हर एक चीज हमने जोड़ी है एक एक करके और आगे भी ऐसे ही जोड़ेंगे,
कि हर रोज़ हमारा घर भी चमकेगा उस बेदाग आईने की तरह …………॥

Saturday, July 10, 2010

सड़क पे जमी एक छोटी छाँव में जले हैं जो,

ज़मी से धूलि एक बारिश में चले हैं जो,

वो कल जो खोया है आज की कसक में,

चलो आओ जोडें उसे अपनी इक आवाज से,

करें जो दबा है कहीं हमारे सोये ज़मीर में,

वो पलक खुलती है जो दबे पेट पे हाथ रखके,

वो हाथ जो भागते हैं चाँद लम्हे जी लेने को,

जो खो गयी हैं खुशियाँ मिलने से भी कहीं पहले,

चलो आज बाँट दें उन सभी तकदीर के ख्वाबों को,

लिख दें उनके हाथो में वो कल जो सिर्फ उन्ही का हो ...................

चलो आज कर लें कुछ नया सा

चलो आज कर लें कुछ नया सा,
चलो आज जी लें कुछ अपना सा,
वो जो सोचा था दिन इस सुनहरी धूप में,
चलो आज भीग जायें उस खुली छाँव में,
मेरी नींद जो टूटी थी उस सुबह के सपने से,
मै जो जागा था उस नवल प्रभात में,
चलो आज जगा लें उस सोयी सुबह को ..........................