Sunday, December 26, 2010

इक आइना

इक आइना जो कल खरीदा था मोल भाव करके,
कि एक तस्वीर आयेगी तेरी उसमे पूरी पूरी,
इक नया ओवर कोट भी लिया था बड़ी मशक्कत के बाद,
कि एक सर्द लहर में खूबसूरत अक्स उस आईने में था,
दुकानदार ने दो हुक भी दिये थे उसे टांगने के लिए,
मगर दीवार के लिए चार कीलें ही न थी हमारे पास,
चलो एक जूट कि रस्सी में ही लटका दिया है उस आईने को,
कि जब कीलें मिलेंगी तब देखेंगे, आज ऐसे ही सही,
कुछ शानदार किनारे भी बने हैं उसके चारो ओर,
कि तेरी तस्वीर जो दिखती है उसमे एक फ्रेम के साथ,
हर एक चीज हमने जोड़ी है एक एक करके और आगे भी ऐसे ही जोड़ेंगे,
कि हर रोज़ हमारा घर भी चमकेगा उस बेदाग आईने की तरह …………॥

1 comment:

Unknown said...

really good touching....