Saturday, July 10, 2010

सड़क पे जमी एक छोटी छाँव में जले हैं जो,

ज़मी से धूलि एक बारिश में चले हैं जो,

वो कल जो खोया है आज की कसक में,

चलो आओ जोडें उसे अपनी इक आवाज से,

करें जो दबा है कहीं हमारे सोये ज़मीर में,

वो पलक खुलती है जो दबे पेट पे हाथ रखके,

वो हाथ जो भागते हैं चाँद लम्हे जी लेने को,

जो खो गयी हैं खुशियाँ मिलने से भी कहीं पहले,

चलो आज बाँट दें उन सभी तकदीर के ख्वाबों को,

लिख दें उनके हाथो में वो कल जो सिर्फ उन्ही का हो ...................

चलो आज कर लें कुछ नया सा

चलो आज कर लें कुछ नया सा,
चलो आज जी लें कुछ अपना सा,
वो जो सोचा था दिन इस सुनहरी धूप में,
चलो आज भीग जायें उस खुली छाँव में,
मेरी नींद जो टूटी थी उस सुबह के सपने से,
मै जो जागा था उस नवल प्रभात में,
चलो आज जगा लें उस सोयी सुबह को ..........................