वो रखते हैं पाँव संभल के, इस ज़मीं पे,
फैला है मेरा वजूद, जहाँ बिखर के,
डरते हैं वो, कहीँ चुभ ना जाऊं,
पहचान ना पाए हैं शायद,
इस बिखरे आईने में तस्वीर उन्ही की है..................
Wednesday, October 3, 2007
मेरे भरम पे एहसान तो कर
कुछ तो मेरे भरम पे एहसान कर,
कभी तो ये कह के बता कि मेरी साँसों से नफरत है तुझे,
कब से सुन रही ये आँखें तेरे क़दमों की आहट,
एक बार ना ही कह के इन पलकों को राहत तो दे,
जाने कितने दिनों से ये लम्हे धड़कना भूल गए हैं,
कम से कम नज़रें ही फेर ले कि इन साँसों को चैन से सोने तो दे ..........................
कभी तो ये कह के बता कि मेरी साँसों से नफरत है तुझे,
कब से सुन रही ये आँखें तेरे क़दमों की आहट,
एक बार ना ही कह के इन पलकों को राहत तो दे,
जाने कितने दिनों से ये लम्हे धड़कना भूल गए हैं,
कम से कम नज़रें ही फेर ले कि इन साँसों को चैन से सोने तो दे ..........................
Monday, October 1, 2007
दौड़ते दौड़ते
दौड़ते दौड़ते उड़ने कि आरजू है इन क़दमों में,
पंख नही तो क्या, बाजुओं से ही हवा चीरने कि आरजू है,
सूखते होंठों में प्यास है चांद पे भीगने की,
गीली आंखों कि ख्वाहिश है सूरज को भिगोने की,
आज इन राहों पे पड़ते हैं निशाँ बढते सपनों के,
कल की हवाओं में सरसराहट इन हौसलों के नाम होगी,
सुबह आज उन पलाश के पत्तों पे रात की कहानी है,
कल से ये रात ही न होगी, सिर्फ दिन ही दिन धड्केगा उन नब्ज़ों में.............
पंख नही तो क्या, बाजुओं से ही हवा चीरने कि आरजू है,
सूखते होंठों में प्यास है चांद पे भीगने की,
गीली आंखों कि ख्वाहिश है सूरज को भिगोने की,
आज इन राहों पे पड़ते हैं निशाँ बढते सपनों के,
कल की हवाओं में सरसराहट इन हौसलों के नाम होगी,
सुबह आज उन पलाश के पत्तों पे रात की कहानी है,
कल से ये रात ही न होगी, सिर्फ दिन ही दिन धड्केगा उन नब्ज़ों में.............
जुनून
जुनून है आंखों में, लहू के कतरों में ,
छीन के लानी है उनकी हँसी, खो गयी है जो भीड़ में,
देने हैं वो कुछ पल उन छोटे छोटे धूप में दौड़ते क़दमों को,
आज इस कड़ी चट्कती धूप में ढूँढते हैं जो जरा सी छाँव,
उन छोटे छोटे हाथों में सपने नही हैं,
वो नन्ही नन्ही आँखें देख सकती हैं तो सिर्फ भूख,
उनकी सुबह से शाम तक कि दौड़ है, उस भूख को जीतने की,
क्या वो ऐसे ही दौड़ते रहेंगे, अनजान अपनी आने वाली हार से,
नही हम नही हारेंगे, न ही हम थकेंगे,
जीतना है हर एक उस हार के पल को.............................
छीन के लानी है उनकी हँसी, खो गयी है जो भीड़ में,
देने हैं वो कुछ पल उन छोटे छोटे धूप में दौड़ते क़दमों को,
आज इस कड़ी चट्कती धूप में ढूँढते हैं जो जरा सी छाँव,
उन छोटे छोटे हाथों में सपने नही हैं,
वो नन्ही नन्ही आँखें देख सकती हैं तो सिर्फ भूख,
उनकी सुबह से शाम तक कि दौड़ है, उस भूख को जीतने की,
क्या वो ऐसे ही दौड़ते रहेंगे, अनजान अपनी आने वाली हार से,
नही हम नही हारेंगे, न ही हम थकेंगे,
जीतना है हर एक उस हार के पल को.............................
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